لقد فاح الربیع و دار ساقی |
لقد فاح الربیع و دار ساقی
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وهب نسیم روضات العراق
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صبا بوی عراق آورد گویی
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که خوش گشت از نسیم او عراقی
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الا یا حبذا! نفحات ارض
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جوی المشتاق یشفی باشتیاق
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دریغا! روزگار نوش بگذشت
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ندیمم بخت بود و یار ساقی
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بلیت ان صبحی بالبلایا
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الاق مرور ایام التلاقی
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ز جور روزگار ناموافق
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جدا گشتم ز یاران وفاقی
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ادر، یا ایها الساقی، ارحنی
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زمانا من خمار الافتراق
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دلم را شاد کن، ساقی، که نگذاشت
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جدایی بر من از غم هیچ باقی
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و عل لعل لطیفی نار قلبی
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و قلبی من تراکم فی احتراق
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بده جامی، که اندر وی ببینم
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جمال دوستان هم وثاقی
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جرعت من التفرق کل یوم
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و اجریت الدموع من الماقی
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بنال، ایدل، ز درد و غم که پیوست
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گرفتار غم و درد فراقی
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الا یا اهل العراق، تحذ قلبی
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الیکم و اشتمل من اشتیاقی
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عراقی، خوش بموی و زار بگری
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که در هندوستان از جفت طاقی
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